आत्मज्ञान
एक बार भगवान शंकर के पास से चार साधू गुजर रहे थे
वो अपने धुन में मस्त थे जिससे उन्होंने भगवान शंकर को प्रणाम नहीं किया. जिससे
पार्वती जी को बहुत गुस्सा आया तो उन्होंने ने उन साधुओं को श्राप दे दिया की जाओ
कोचवान बन जाओ. जिससे श्राप के कारन वो
चरों हाथी को चलाने वाले कोचवान बन गए. एक दिन वो चरों हाथी पे बैठ के कही जा रहे
थे तब माता पार्वती उनके सामने पहुँच कर पूछा अच्छा बताओ जी कोचवान बनकर कैसा लग
रहा है ?. तब उन चारों ने कहा बहुत अच्छा लग रहा है | फिर पार्वतीजी बोलीं पहले तुम
साधू थे चरों तरफ तुम्हारी पूजा होती थी , अब हाथी हांक रहे हो और बोलते हो अच्छा
लग रहा है . तब वो साधुओं ने कहा इससे क्या फर्क परता है हमारा तो केवल बहरी रूप
ही बदला है , किसी नाटक में अगर कोई पहले चौकीदार और बाद में राजा बन कर आये तो
उससे कोई अंतर तो नहीं परता . माता को उनपे और गुस्सा आया और श्राप दिया जाओ तुम
ऊंट बन जाओ | फिर वो ऊंट बन गए एक दिन वो चरों कही जा रहे थे और अपने लम्बी गर्दन से
पेड़ की पत्तियां तोड़ के खा रहे थे, तभी वहां पार्वती जी पहुंची पर बोलीं अब बताओ
ऊंट बन कर कैसा लग रहा है तब वो बोले अब तो और
अच्छा लग रहा है न नहाने की फ़िक्र न धोने की मस्त पत्ते खाते हैं और घूमते
हैं . पार्वती जी ने सोचा ये हद हो गयी इनका तो कुछ बिगरता ही नहीं तब वो भगवान
शंकर के पास पहुंची और बोली प्रभु वो साधू किस मिट्टी के बने हैं उनको तो किसी बात
की कोई तकलीफ ही नहीं होती पहले कोचवान बनाया फिर ऊंट फिर भी वो कहते हैं की वो
सुखी हैं | तब भगवान ने कहा, पार्वती वो साधू आत्मज्ञानी हैं वो खुद को आत्मा
मानते हैं उन्हें ये फर्क नहीं परता की वो किस शारीर में है क्यं की ये शारीर आज
है तो कल नहीं लेकिन आत्मा अजर अमर है . इसी प्रकार चाहे तुम बिल्ली बनो, रजा बनो
या कंगाल बनो , रोगी बन जाओ या पहलवान इससे किसी का कुछ नहीं बनता बिगरता है लेकिन
व्यवहार के बदलने से सब कुछ बिगर जाता है.
अन्य आध्यात्मिक कथाएं
No comments