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ठगे गए गणेश जी

एक वृद्ध अंधी  महिला थी , वो गणेश भगवान की  बहुत मन से उपासना पूजा करती थी। एक दिन भगवान प्रशन्न होकर प्रकट होगये और बोले  हम तुम्हारी साधना से  बहुत प्रसन्न है की कैसे तुमने नेत्रहीन होकर भी मेर इतनी पूजा की तुम कोई एक वरदान मांगो हम उसे अभी पूरा करेंगे। बुढ़िया ये सुनकर संकोच में पर गयी की'आखिर क्या मांगे।  तो वो बोली प्रभु  आप आगये मुझे और क्या चाहिए मुझे तो सबकुछ मिल गया फिर भी गणेश जी ने उसे कुछ मांगने को कहा तो वो बोली प्रभु अभी तो मुझे कुछ समझ नहीं आरहा आप अगर आप कल तक सोचने का समय दें तो बहुत कृपा होगी। भगवान ने उसे एक दिन का समय दे दिया।

                                            फिर वो सोचने लगी आखिर क्या मांगे, तो वो अपने बेटे के पास गयी और सारी बात बताई तो उसका बेटा बोला माँ हमारे पास धन की बहुत कमी है तुम धन मांग लो , इतनी देर में उसकी बहु भी वह पहुंच गयी  तो  उसे जब ये बात पता चली तो बोली नहीं हम अपने लिए एक वारिस मांग लेते हैं।  बुढ़िया फिर  सोच में पर गयी उसे लगा ये  तो अपने मतलब की चीज मांगने में लगे हैं मैं  क्या करूँ।  फिर वो अपने एक  परोसी के  पास गयी और सारी  बात बताई।  तब वो बोली बहन तुम अपने लिए ऑंखें कियूं नहीं मांग लेती।  बुढ़िया सोच में पर गयी आखिर क्या करूँ रात भर सोचती रही। 
ऐसे ही दिन खत्म होकर दूसरा दिन आगया गणेश भगवान्  प्रकट हुए  और उन्होंने ने उस महिला से पूछा  बताओ तुम्हें क्या चाहिए।  तो बुढ़िया ने कहा प्रभु मैं अपने पोते को सोने के ग्लास में दूध पीते हुए देखना चाहती हूँ। गणेश भगवन उसकी ये इक्षा सुन कर हसने लगे भगवान बोले तुमने तो मुझे ठग लिए एक ही वरदान में तिन चीजें मांग ली। बेटे के लिए धन  बहु के लिए पुत्र  और अपने लिए अपनी आँखें और लम्बी उम्र  फिर प्रभु उसे वरदान दे कर अंतर्ध्यान होगये। 
















फिर भगवन के वरदान स्वरुप  उसके बेटे का रोजगार चलने लगा जिससे उसके घर धन आया उसकी बहु ने एक सुन्दर पुत्र को जन्म दिया और उसकी आँखें भी वापस आगयी। 

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