सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र
महर्षि वशिष्ठ और विश्वामित्र में इस बात पर बहस हो रही थी की, विश्वामित्र ने कहा ‘ तुम्हारा कोई ऐसा शिष्य है जो सत्य्व्राती है ?’ वशिष्ठ बोले ‘ हा है वो हैं महाराज हरिश्चंद्र तब विश्वामित्र ने का नही हो सकता हम उसका सत्य भ्रष्ट कर देंगे. तब वशिष्ठ जी ने कहा जाओ करके दिखाओ ; फिर विश्वामित्र वहा से चल दिए और हरिश्चंद्र से स्वप्न में उनका सर्वस्व राज पाट मांग लिया और हरिश्चंद्र ने उनको दे भी दिया, लेकिन जब सुबह हुई तो हरिश्चंद्र ने सोचा मैंने तो अपना सर्वस्व दान कर दिया लेकिन वो बाबा कहा हैं और कौन हैं , तभी विश्वामित्र जी वहा पहुचे और बोले , मैं ही रात में तुम्हारे स्वपन में आया था चलो अब अपना वचन पूरा करो, तब राजा ने कहा महराज सब कुछ आपका हि है आप ले लेनें |
फिर विश्वामित्र जी ने कहा दान के बाद दक्षिणा भी होती है वो लाओ, तब राजा ने नौकर से कहा महराज को दक्षिणा दो | तब बाबा ने कहा जब राज्य मेरा तो तुम इससे मुझे दक्षिणा कैसे दे सकते हो? चले जाओ बाहर अपना शरीर बेचकर मेरे लिए दक्षिणा लाओ रजा अपने पुत्र रोहित और पत्नी शैव्या के साथ राज्य से बाहर चले गए, उसने एक डोम के यहाँ अपने आपको बेच दिया | उतने से भी बात नहीं बनी महाराज बोलते हैं और दक्षिणा लाओ तब वो अपनी पत्नी को भी एक ब्राह्मण के यहाँ बेच देते हैं | ब्राह्मण बहुत क्रूरतापूर्वक उसकी पत्नी को वहा से ले जाते हैं, उसका बेटा भी पत्नीं के साथ ही जाता है. विश्वामित्र स्वयं उस ब्राह्मण के रूप में हैं ब्राह्मण सुबह से शाम तक शैव्या से खूब मेहनत का काम लेता है ताकि वो ऊब कर वहा से चली जाये, जिस महारानी के एक काम करने के लिए 10-10 नौकर चाकर हों वो आज एक ब्राह्मण की दासी बन गयी है, वो क्षत्रिणी भी अपने पति के दिए वचन को निभाने में कोई कसर नहीं छोरती| ब्राम्हण सोचते हैं ये तो जाती ही नहीं क्या किया जाये फिर वो सर्प का रूप धर कर बाग़ में जाते हैं जहा उसका पुत्र रोहित खेल रहा होता है और उसको डस लेते हैं | वहा से कोई उसकी माँ को खबर देता है की तुम्हारे पुत्र को सांप ने काट लिया है और उसकी मृत्यु हो गयी है | ऐसी विषम परिस्थिति में भी ब्राह्मण उसे छुट्टी नहीं देता और कहा मर गया तो मर जाने दो पहले अपना काम पूरा करो , वो बेचारी कसी तरह अपना काम पूरा करती है और भागे भागे बेटे के पास जाती है पुत्र को इस तरह देख के माँ का कलेजा मुँह को आता है. महारानी होने के बाद भी आज उसके पास कोई साधन नहीं कोई धन नहीं जिससे वो अपने पुत्र का अंतिम संस्कार कर सके वो अपनी साड़ी का एक टुकड़ा फार कर उसी का कफ़न बनती है और उसी में लपेट कर अपने कलेजे के टुकड़े को शमशान ले जाती है, शैव्या शमशान में उसी जगह पहुचती है जहा उसका पति शव जलाता था | मुर्दे को देखकर वो अपना कर मांगता है | स्त्री रोती हुई कहती है मेरे पास धन नहीं है मैं गरीब हूँ , गुलाम हूँ अपनी सारी को फार कर कफ़न बना कर लाइ हूँ | मैं कहा से कर चुकाऊँगी | लेकिन फिर भी वो नहीं माना वो बोला मैं अपने कर्तव्य के अधीन हूँ बिना कर लिए मैं शव नहीं जलने दे सकता रात के अँधेरे में शायद हरिश्चंद्र अपनी पत्नी को नहीं पहचानता होगा, उसे ये भी नहीं पता की उसका पुत्र अब नही रहा शायद उसे ये पता चले तो उसकी कर्तव्यनिष्ठा ढीली पर जाये, तभी बिजली चमकती है दोनों पति-पत्नी एक दुसरे को देखते हैं, पत्नी देखते है फूट-फूट कर रोने लगती है , महाराज ये आपका ही लड़का जिसके लिए मैं कफ़न तक नही ला पाई, और बोलती है अब बताइए मैं आपको क्या कर दूँ लेकिन हरिश्चंद्र ठहरा हरिश्चंद्र के आँखों से अश्रु धरा बह रही है लेकिन फिर भी वो कहता है मैं कुछ नही जनता बिना कर दिए मैं शव नहीं जलाने दे सकता .. तुम्हें कर देना ही होगा| फिर भी स्त्री रोती है कृपा करें मैं कहा से कर दूँ मेरे पास कुछ भी नहीं है, फिर भी हरिश्चंद्र नहीं मानता तो रानी अपनी बची हुई सारी को कर के रूप में देने लगती है की तभी आकाशवाणी होती है , धन्य हो हरिश्चंद्र धन्य हो , कुदरत में तहलका मच जाता है सारी शक्तियां प्रकट हो जाती हैं . सभी देवतागन आ जाते हैं वशिष्ठ और विश्वामित्र भी आते है और सारी बात बताते हैं. और बोलते हैं हम मान गए सम्पूर्ण विश्व में तुम ही सत्यवादी हो धन्य हो महाराज मैं तुम्हारा राज्य तुम्हें वापसकरता हूँ.
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