माँ शैलपुत्री की कथा तथा पूजन विधि navratri pujan vidhi in hindi
शारदीय नवरात्र शुरू हो चुकी है। और आज यानी 10 अक्टूबर को प्रतिपदा तिथि है ओर आज माँ शैलपुत्री की पूजा की जाएगी। पूरे नवरात्र अमेज़िंग दरबार के साथ जुड़े रहें और माता के पूजन विधि को जरूर पढ़ें। माँ शैलपुत्री का नाम पर्वत राज हिमालय की पुत्री होने के कारण पड़ा। माँ अखंड सौभाग्य की प्रतीक हैं।
आई जानते हैं। माँ शैलपुत्री की पूजन विधि।
आई जानते हैं। माँ शैलपुत्री की पूजन विधि।
माँ शैलपुत्री की कथा
माँ शैलपुत्री का नाम पार्वती भी है । माता पिछले जन्म में राजा दक्ष की पुत्री थीं जिसका नाम सती था माता सती भगवान शंकर की पत्नी थी। एक बार राजा दक्ष ने यज्ञ किया सारे देवताओं को आमंत्रित किया लेकिन भगवान शंकर को आमंत्रित नही किया। लेकिन माता ने उनसे काफी चलने की जिद की भगवान नही मान रहे थे लेकिन काफी जिद के बाद वो माता के आगे झुक गए और यज्ञ में जाने को तैयार होगए जब दोंनो यज्ञ में पहुचें तो राजा दक्ष ने भगवान का काफी अपमान किया जो माता को सहन नही हुआ और वहाँ उन्हों ने योगाग्नि में जलकर प्राण त्याग कर दिया। यही माता सती फिर अपने दूसरे जन्म में हिमालय राज के घर जन्म लिया जिस कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा। सनकी सवारी नंदी नाम का बृषभ है तथा इनके हाथ मे त्रिशुल है।
माँ शैलपुत्री की पूजन विधि
सबसे पहले चौकी (बाजोट) पर माता शैलपुत्री की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें। इसके बाद गंगा जल या गोमूत्र से शुद्धिकरण करें। चौकी पर चांदी, तांबे या मिट्टी के घड़े में जल भरकर उस पर नारियल रखकर कलश स्थापना करें। उसी चौकी पर श्रीगणेश, वरुण, नवग्रह, षोडश मातृका (16 देवी), सप्त घृत मातृका (सात सिंदूर की बिंदी लगाएं) की स्थापना भी करें। इसके बाद व्रत, पूजन का संकल्प लें और वैदिक एवं सप्तशती मंत्रों द्वारा मां शैलपुत्री सहित समस्त स्थापित देवताओं की षोडशोपचार पूजा करें। इसमें आवाहन, आसन, पाद्य, अध्र्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, सौभाग्य सूत्र, चंदन, रोली, हल्दी, सिंदूर, दुर्वा, बिल्वपत्र, आभूषण, पुष्प-हार, सुगंधित द्रव्य, धूप-दीप, नैवेद्य, फल, पान, दक्षिणा, आरती, प्रदक्षिणा, मंत्र पुष्पांजलि आदि करें। तत्पश्चात प्रसाद वितरण कर पूजन संपन्न करें।
ध्यान मंत्र
वन्दे वांछित लाभाय चन्द्राद्र्वकृतशेखराम्।
वृषारूढ़ा शूलधरां यशस्विनीम्॥
अर्थ- देवी वृषभ पर विराजित हैं। शैलपुत्री के दाहिने हाथ में त्रिशूल है और बाएं हाथ में कमल पुष्प सुशोभित है। यही नवदुर्गाओं में प्रथम दुर्गा है। नवरात्रि के प्रथम दिन देवी उपासना के अंतर्गत शैलपुत्री का पूजन करना चाहिए
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