लक्ष्मीजी का वास bhakti kahani story in hindi
लक्ष्मीजी का वास bhakti kahani story in hindi
एक नगर में एक धनी सेठ रहते थे एक रात उन्होंने ने सपने में देखा एक देवी घर से बाहर जा रही हैं।तो सेठ ने उनसे पूछा देवी आप कौन हैं और मेरे घर में. कियूं आई थी और अब कियूं जा रही हैं। तो देवी ने कहा मैं लक्ष्मी हूँ मैं सदा से तुम्हारे घर मे रहती थी। तुम्हारे पूर्वजों ने ओर तुमने भी सदा मेरा आदर किया । हमेशा संतों की सेवा की सदा परोपकार के काम किये लेकिन अब मेरे जाने का समय आगया है में तुमसे आती प्रसन्न हूँ तुम मुझसे जो चाहो मांग सकते हो। तो सेठ ने कहा माता में अपनी तीनों बहुओं से विचार करने के बाद आपको बताऊंगा। तो माता ने कहा ठीक हैं में कल रात को आती हूँ।
फिर अगली सुबह सेठ अपनी तीनो बहुओं को बुलाता है और सारी बात बताता है।पहली बहु बोलती है आप उनसे बहुत सारे सोने जेवरात मांग लीजिये । दूसरी बोलती है आप उनसे बहुत सारा धन मांग लीजिये। लेकिन तीसरी बहु बहुत ही धर्म परायण थी उसने कहा पिताजी हम धन लेके क्या करेंगे आगे चल कर यही धन हमारे संतानो को अहंकारी बनाएंगे । मांगना है तो उनसे मांगिये की हम सदा परोपकारी बने रहें संतो की सेवा करें हमारे परिवार ऐसे ही प्यार बना रहे ।
फिर रात में माता लक्ष्मी सेठ के स्वप्न में आई और बोली अब बताओ क्या मांगते हो सेठ ने कहा कि माता बस आप ये वरदान दीजिये की हम हमेशा परोपकारी बने रहे हमारे परिवार जनों में प्रेम रहे हम संतो की सेवा करें। जब माता ने ये सुना तो बोली जहां संतो की सेवा परिवार में प्रेम रहता है वह स्वयं नारायण का वास होता है ओर मैं तो हमेशा नारायण के चरणों मे रहती हूं तुमने तो मुझे सदा यहाँ रहने का वरदान मांग लिया तथास्तु।
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