भारत के महान संत श्री नामदेव जी indias great sant naamdev ji in hindi
नामदेवजी ने जैसे नाम लिखना सीखा बार बार श्री विठह्ल का नाम लिखते थे। उनका भगवत् प्रेम इतना की वो की वो भगवान के मूर्ति के सामने बैठ जाते और बोलते " तुम दूध पीओ तो मैं पिऊंगा " .
इनका परिवार खूब बढ़ गया। लेकिन इनकी घर में कभी अशक्ति नहीं हुई। ये तो श्रीपंढरीनाथ में चित लगाये रहते थे।
श्रीज्ञानेश्वर महारज तीर्थ यात्रा के समय नामदेव जी से मिले और अपने
साथ चलने का आग्रह किया। श्री नामदेव जी ने कहा मेरे तो स्वामी
श्रीविठ्ठल हैं वे आज्ञा दे तभी मैं जा सकता हूँ। कहते हैं स्वयं श्रीपाण्डुरंग ने
इन्हे ज्ञानेश्वर के साथ जाने की आज्ञा दी। तिरह तीर्थयात्रा के समय राजपूताने के मरुस्थल पहुँचनेपर दोनों प्यास लगी बड़ी कठिनइसे एक
कुआँ मिला पर उसमे जल नहीं था। ज्ञानेश्वरजी ने योगसिद्धि से कुएं के के
तल में प्रवेश कर जल पी आये। उन्होंने नामदेव जी से पूछा मैं तुम्हारे लिए
भी जल ला दूँ। तब नामदेवजी ने कहा अगर मेरे प्रभु को जल पिलाना होगा
तो वो जरूर पिलायेंगे। और थोड़ी ही देर में कुआँ पानी से ऊपर तक भर
गया तब नाम देव जी ने जल पिया।
जब ज्ञानेश्वर महाराज ने समाधि ले ली ,तब नामदेवजी ४० ५० साधुओं के
साथ वृन्दावन पहुंचे और व्रज के तीर्थों का दर्शन कर पंजाब चले गए। अठारह वर्ष तक पंजाब में रहे और भगवत गीता का प्रचार किया।
गुरुग्रंथ साहेब में नामदेव जी के साठ से अधिक पद मिलते हैं।
गुरदासपुरके धोमान ग्राम में उनका बनाया गुरुद्वारा है। इसके बाद वे पंजाब से पंढरपुर वापस\ लौट आये।
अस्सी वर्ष की अवस्था में 1407 में इन्होंने अपना देह त्याग किया। उनके मराठी और हिंदी के पदों का महाराष्ट्र ,पंजाब तथा सभी भक्त समुदाय में बड़ा सम्मान है.उनक पदों में भगवतगीता का भाव कूट कूट के भरा है।
साथ चलने का आग्रह किया। श्री नामदेव जी ने कहा मेरे तो स्वामी
श्रीविठ्ठल हैं वे आज्ञा दे तभी मैं जा सकता हूँ। कहते हैं स्वयं श्रीपाण्डुरंग ने
इन्हे ज्ञानेश्वर के साथ जाने की आज्ञा दी। तिरह तीर्थयात्रा के समय राजपूताने के मरुस्थल पहुँचनेपर दोनों प्यास लगी बड़ी कठिनइसे एक
कुआँ मिला पर उसमे जल नहीं था। ज्ञानेश्वरजी ने योगसिद्धि से कुएं के के
तल में प्रवेश कर जल पी आये। उन्होंने नामदेव जी से पूछा मैं तुम्हारे लिए
भी जल ला दूँ। तब नामदेवजी ने कहा अगर मेरे प्रभु को जल पिलाना होगा
तो वो जरूर पिलायेंगे। और थोड़ी ही देर में कुआँ पानी से ऊपर तक भर
गया तब नाम देव जी ने जल पिया।
जब ज्ञानेश्वर महाराज ने समाधि ले ली ,तब नामदेवजी ४० ५० साधुओं के
साथ वृन्दावन पहुंचे और व्रज के तीर्थों का दर्शन कर पंजाब चले गए। अठारह वर्ष तक पंजाब में रहे और भगवत गीता का प्रचार किया।
गुरुग्रंथ साहेब में नामदेव जी के साठ से अधिक पद मिलते हैं।
गुरदासपुरके धोमान ग्राम में उनका बनाया गुरुद्वारा है। इसके बाद वे पंजाब से पंढरपुर वापस\ लौट आये।
अस्सी वर्ष की अवस्था में 1407 में इन्होंने अपना देह त्याग किया। उनके मराठी और हिंदी के पदों का महाराष्ट्र ,पंजाब तथा सभी भक्त समुदाय में बड़ा सम्मान है.उनक पदों में भगवतगीता का भाव कूट कूट के भरा है।
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