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हवन करते समय स्वाहा का ही उच्चारण क्यों करते हैं?






सनातन धर्म में हर किसी क्रिया का अपना महत्व होता है, हवन का भी अपना महत्व होता है, हवन एक प्राचीन रिवाज है जो देवताओं को हविष्य देने के लिए किया जाता है। हवन करने से माना जाता है कि भगवान इससे प्रसन्न होते हैं और हमें आपना आशीर्वाद देते हैं। हवन करने को ‘देवयज्ञ’ कहा जाता है। हवन में सात पेड़ों की समिधाएँ (लकड़ियाँ) सबसे उपयुक्त होतीं हैं- आम, बड़, पीपल, ढाक, जाँटी, जामुन और शमी। हवन करने से मन में शुद्धता और सकारात्मकता बढ़ती है । हमारे पुराने और हर प्रकार के रोग और शोक मिटते हैं। इससे हमारा गृहस्थ जीवन पुष्ट होता है।
ऋग्वेद में वर्णित यज्ञीय परंपरा के अनुसार देवताओं देव आह्वान के साथ-साथ स्वाहा का उच्चारण कर हवन सामग्री को अग्नि में डाला जाता है. इसका अर्थ यह है कि हवन सामग्री (हविष्य) को अग्नि के माध्यम से देवी-देवताओं तक पहुंचाया जाता है..मान्यताओं के अनुसार स्वाहा प्रकृति की ही एक स्वरूप थीं, जिनका विवाह अग्नि के साथ देवताओं के आग्रह पर सम्पन्न हुआ था. भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं स्वाहा को वरदान देते हुए कहा था कि वे केवल उसी के माध्य से हविष्य को ग्रहण करेंगे अन्यथा नहीं





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