सारी सफलता प्रभु की
एकबार देवताओं ने दैत्यों पर भरी विजय प्राप्त की जिससे उन्हें अभिमान होगया और वे अपने को सर्वश्रेष्ठ समझने लगे , देवताओं के इस घमंड को तोडना जरुरी था, इसलिए परमात्मा ने इन एक लीला रची। देवताओ के सामने एक यक्ष का रूप लेकर आगये , देवता उनको पहचान न सके तो , तो देवराज इंद्र ने अग्निदेव को उस यक्ष का पता लगाने भेजा।
अग्नि देव उस यक्ष के पास पहुचे तो यक्ष ने पूछा तुम कौन हो, तब अग्नि देव ने कहा तुम मुझे नहीं जानते मैं अग्नि देव हु। मैं समस्त सृस्टि को जला कर राख कर सकता हु।
यक्ष :- अच्छा ऐसा बात है तो फिर ये एक छोटा तिनका है इसे जलाकर दिखाओ ,
अग्नि देव ने काफी प्रयास किया वो तीनका जला नहीं क्यंकि परमात्मा ने उनसे शक्ति ले ली थी। आखिर हार कर वे चले गए।
फिर इंद्र ने पवनदेव को भेजा।
यक्ष :- अब तुम कौन हो ?
पवनदेव :- मेरा नाम पवन देव है मैं समस्त सृस्टि को उडा सकता हु।
तो फिर यक्ष ने वही तिनका उनके सामने भी रखा , और पवन देव भी हार गए।
फिर स्वयं इंद्र पहुचे , तबतक यक्ष अंतर्ध्यान होगये थे और वहां पार्वती जी प्रकट हुई। तब इंद्र ने पूछा हे माता वो यक्ष कहा गए। तभी भगवती ने कहा वो स्वयं परब्रम्ह परमेश्वर थे , उन्ही की कृपा से तुमलोगों ने दैत्य पर विजय प्राप्त की , लेकिन तुम उसे अपनी उपलब्धि मान बैठे, इसी घमंड को तोड़ने प्रभु आये थे.
इंद्र ओर अन्य देवताओं को अब पता होगया था की उनकी साड़ी सृष्टि उसी ब्रम्ह से आई है और वे अधिक विनम्र होगये।
इसी प्रकार हमें अपनी सफलता के लिए ईश्वर को धन्यवाद देना चाहिए। पर हम तो हर सफलता का श्रेय खुद को देते हैं।
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