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Story Of kohinoor diamond in hindi | कोहिनूर हिरे की पूरी कहानी

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भारत जो अपने वैभव धन सम्पदा के लिए जाना जाता था। कितने ही विदेशी आक्रमणकारियों  ने इसी धन सम्पदा को लूटने के लिए कई बार भारत पर हमला किया।  ऐसे भारत को गर्व था अपने एक ऐसे रत्न पर  जो पर जो सचमे अजूबा था।  वो था कोहिनूर , भारत के पौराणिक  कथाओं के अनुसार कोहिनूर हीरा वही स्यमन्तक मणि है , जो स्वयं सूर्यदेव ने सत्राजित को दिया , आइये जानते हैं कोहिनूर की  ऐसे ही  रोचक  कहानियां।

Kohinor pouranik story

पौराणिक कहानियों के अनुसार द्वापर युग में सत्रजीत नाम का एक आदमी हुआ जिसने सूर्यदेव की तपस्या की जिससे प्रशन्न होकर सूर्य देव ने उसे श्यामन्तक मणि दी , श्यामन्तक मणि की अपार  आभा से सत्रजीत चमक रहा था , कहा जाता था' जहां भी ये मणि  रहती थी  वह किसी प्रकार का कष्ट , रोग  , शोक नहीं होता था।               
सत्राजित ,मणि ले कर द्वारिका गया , वह जो भी उसे देखता चकित रह जाता कोई उसे पहचान नहीं पता , कियूं की उससे एक अलौकिक  तेज  निकल रहा था। बात धीरे-धीरे भगवान श्रीकृष्ण तक पहुंची तो उन्होंने ने उसे बुलाकर वो मणि माँगा लेकिन सत्राजित ने उसे अपने भाई को दे दिया , एक दिन उसका भाई मणि लेकर जंगल गया जहां शेर ने उसकी हत्या कर दी और मणि ले लिया।  बाद में  रीछ राज जामवन्त ने शेर को मार कर मणि ले ली  और अपनी बेटी को खेलने के लिए दे दिया। 
इधर जब सत्राजित का भाई  नहीं  लौटा तो उसे लगा श्रीकृष्ण ने उसके भाई को मारकर मणि ले ली  , जब ये बात भगवन कृष्ण को पता चला तो वे बहुत दुःखी हुए ,और वो सत्राजित के भाई को ढूंढने गए जहां उन्हें साड़ी सच्चाई मालूम हुई , फिर जामवन्त से उनका युद्ध हुआ जिसमे जामवन्त हार गए और अपनी पुत्री जामवंती  का विवाह श्रीकृष्ण  के साथ कर दिया और और श्री कृष्ण  जामवंती सहित श्यामन्तक मणि लेकर द्वारिका वापस आगये।

Kohinoor Diamond History In Hindi

 वर्त्तमान युग में मन जाता है कोहिनूर को आँध्रप्रदेश के गोलकुंडा के खदान से निकाला गया 1730 इसवी तक गोलकुंडा में पुरे दुनिया में एक मात्र हीरे की'खदान थी। वहां से निकलने के बाद कोहिनूर कई राजाओं , शासकों से   होते हुए अंग्रेजों के पास चला गया , कोहिनूर  का वर्णन बाबरनामा में मिलता है जिसमे मुगलबादशाह बाबर लिखते  है  की  ये हीरा मालवा के  राजा था , Kohinoor diamond value उसके अनुसार कोहिनूर इतना कीमती था की इससे पुरे  संसार को दो दिनों तक खिलाया जा सकता   था ,लेकिन   ऎसी विडम्बना रही की कोहिनूर कभी बिका नहीं ये या तो लूटा गया याफिर तोहफे में गया।
भारत के कई शासकों से होता हुआ कोहिनूर पंजाब के महाराजा रंजीत सिंह के पास गया जिसे इन्होने अपने अंतिम समय में इसे पूरी के जगन्नाथ मंदिर को दान देने के लिए लिखा , इधर लाहौर पर\ब्रिटिश शासन का कब्ज़ा हो गया , उस समय  डलहौजी भी कोहिनूर को पाना चाहते थे , बाद में उन्होंने ने महाराजा रंजीत सिंह के बेटे दिलीप से कोहिनूर को   विक्टोरिया को भेंट कराई।  और आज तक कोहिनूर ब्रिटिश राजघराने के पास ही है।



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