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शिव भक्त विद्यापति


विद्यापति मैथली के महान कवी हुए। साथ ही वे भगवान शिव के अनन्य भक्त थे।  महादेव उनके लिखे हुए तथा उनके गए हुए भजन सुनकर मंत्रमुग्ध हो जाते थे , आखिर प्रभु से रहा नहीं गया एक दिन वो भेष  बदल कर विद्यापति के पास पहुचे और खुद को नौकर रखने का आग्रह किया।  विद्यापति जी की  आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी तो उन्होंने ने उसे मन कर दिया लेकिन महादेव ने बहुत आग्रह किया और सिर्फ दो वक़्त के खाने पर रखने को कहा।  उनकी ये बात विद्यापति की पत्नी सुन रही  थी।  तो उन्होंने ने कहा रख कियूं  नहीं लेते  जब  कर रहा है  तो।  तो विद्यापति जी ने उसे अपने घर नौकर रख लिया , उसने अपना नाम उगना बताया।
                                  उगना  विद्यापति जी के घर का सारा काम करता लेकिन जब विद्यापति जी भजन गाते वो उनके सामने बैठ कर भजन सुना करता।  वो भजन में इतना लीन हो जाता की बाकि सब कुछ भूल जाता।
एक बार की बात है वीद्यापति जी कही बाहर जा रहे थे उगना  भी उनके साथ हो लिया जेष्ठ  का महीना था  भयंकर गर्मी थी धरती मनो गर्म तवे से सी जल रही थी , इस बीच विद्यापति जी को प्यास लगी , कंठ सुखा  जा रहा था , उन्होंने उगना से कहा  " उगना बहुत गाला सुख रहा कहीं से पानी ला दो " उगना सोच में पड़  गया  इस निर्जन में आखिर  जल कहा से लाऊं दूर-दूर  तक कोई जल का श्रोत नजर नहीं आरहा लेकिन अपने स्वामी को ऐसे भी नहीं छोड़  सकता  . फिर भगवन शिव कुछ आगे जा कर जटा खोली और और एक पात्र में पानी भर कर ले आये। विद्यापति जी ने जब जल पिया तो उस जल में उन्हें गंगा जल का स्वाद आया , जब उन्होंने थोड़ा इधर उधर देखा तो कोई जल श्रोत नजर नहीं आया  तब उन्हें थोडी  शंका हुई  हो न हो ये उगना कोई सामान्य व्यक्ति  नहीं है।  तो  उन्होंने उगना को असली परिचय देने को कहा लेकिन उगना टालमटोल रहा था।  आखिर विद्यापति भोलेनाथ बोलते हुए उगना के चरणों पे गिर पर फिर भगवन ने उन्हें अपना वास्तविक स्वरुप दिखाया और बोला मैं तुम्हारे पास जब तक रहूँगा जब तक तुम  मेरा भेद किसी को नहीं बताओगे।
                               एक दिन  की बात है विद्यापति जी की पत्नी  सुशीला  खाना बना रही थी और विद्यापति जी भजन गा  रहे थे और उगना उनके भजन को सुनने में मग्न  था।  तभी सुशीला ने उगना को आवाज  दी लेकिन उगना को होश कहाँ।  जब एक दो बार आवाज देने पर उगना नहीं आया तो सुशील जलती हुई लकड़ी लेते हुए गुस्से से उगना  की पिटाई करने  लगी तब विद्या पति से रहा नहीं  गया और  उनके मुख से निकल गया साक्षात् शिव पर प्रहार। ये सुनते ही सुशील रुक गयी और भगवान अंतर्ध्यान हो गए। उनके जाते ही  विद्यापति को एहसास हुआ की उनसे भूल होगयी। लेकिन तबतक प्रभु जा  चुके थे।
इसके बाद विद्यापति पागलों की भांति उनको इधर-उधर ढूंढने लगे।  वन में खेतों में खूब ढूंढा लेकिन शिव नही मिले।  उनकी ये दशा देख  प्रभु को दया आगई  भगवन शिव प्रकट हो गए।  भगवन बोले "विद्यापति  अब मैं तुम्हारे साथ  इस रूप  रह सकता  लेकिन शिवलिंग के रूप में यहाँ रहूँगा " आज भी भगवन शिव  बिहार के मधुबनी  में इसी रूप में हैं। 



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